मुरली मनोहर पांडेय
उन्मुक्त उड़ान मंच की संस्थापिका व अध्यक्षा डॉ दवीना अमर ठकराल देविका के नेतृत्व, मार्गदर्शन, दिशा निर्देश से, कार्यकारिणी के अत्यंत सक्रिय सकारात्मक सहयोग से व रचनाकारों की उल्लेखनीय, रेखांकित करने योग्य रचना धर्मिता से नित नए आयोजन मंच पर आयोजित किए जा रहे हैं।
इसी श्रृंखला में विश्व पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजन प्रभारी दिव्या भट्ट स्वयं जी द्वारा बेहतरीन विषय निरूपण किया गया। हमारी वसुंधरा विषय को केंद्र बिंदु बनाकर 17 प्रबुद्ध रचनाकारों ने विजया घनाक्षरी में अपनी रचनाएँ लिखित व वीडियो प्रस्तुति के माध्यम से प्रेषित कर आयोजन को संदेश परक बना दिया।
विश्व पुस्तक दिवस को मनाते हुए सुनील भारती आज़ाद ने अपनी भावाभिव्यक्ति देकर आयोजन का शुभारंभ किया और 24 प्रबुद्ध मनीषियों ने अपनी सशक्त लेखनी से छंदमुक्त रचनाएँ प्रेषित की।
चित्र चिंतन के माध्यम से डॉ. अनीता राजपाल वसुंधरा ने रचनाकारों को चिंतन मनन व लेखन द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति देने के लिए प्रेरित व आमंत्रित किया। 24 रचनाकारों ने चित्राभिव्यक्ति देकर आयोजन को गति प्रदान करते हुए सार्थक व सफल बनाया। स्वैच्छिक विषय व विधा के अंतर्गत 40 रचनाकारों की सहभागिता रही।
उन्मुक्त उड़ान मंच के सर्वाधिक आकर्षण बिंदु साप्ताहिक आयोजन के माध्यम से रचनाकार अपनी भावाभिव्यक्ति देकर अपने विचारों को समाज तक पहुँचाने का प्रयास करते आए हैं।
इस बार का साप्ताहिक आयोजन विषय था मानव की आवश्यकता पूर्ति हेतु धरती का दोहन कितना उचित।
आयोजन प्रभारी के रूप में अशोक दोशी दिवाकर ने अपने विचारों से मंच को समृद्ध करते हुए श्रेष्ठ रचनाकारों को अपने विचारों से विषय को सार्थकता प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया ।
पूजनीय धरा व परम तत्व ब्रह्माण्ड के संचालक को नमन करते हुए अत्यंत विस्तार से प्राकृतिक संपदा का वर्णन करते हुए, प्राकृतिक असंतुलन, ओज़ोन छिद्र व बेलगाम दोहन की रोकथाम का आवाहन किया है।
संजीव कुमार सजग के विचार में धरती केवल एक ग्रह नहीं बल्कि जीवन की पालना है। संसाधनों का उपयोग आवश्यक है परंतु सोच समझकर संतुलन और सहअस्तित्व के साथ।
प्रजापति श्योनाथ सिंह शिव के अनुसार मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भूमि का अंधाधुंध दोहन कर रहा है और स्वयं को विकास पुरुष कहते हुए प्रफुल्लित हो रहा है ।
उदय सिंह कुशवाहा ने कहा कि हम जीवन को अधिक सरल बनाने के चक्कर में धरती का दोहन कर रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए दुविधा का कारण बन रहे हैं। सुरिंदर बिंदल के भावानुसार मानव अपनी असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु असीमित दोहन कर भविष्य को विकराल बनाता जा रहा है ।
शिखा खुराना के विचारानुसार धरती माँ हमारी संरक्षिका है। भविष्य की पीढ़ियों को स्वस्थ समृद्ध, संतुलित, धरती सौंपने के लिए हमें आवश्यकता और लालसा के बीच की रेखा पहचाननी होगी ।
माधुरी शुक्ला की भावाभिव्यक्ति के अनुसार आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम विकास की ओर नहीं विनाश की ओर बढ़ते जा रहे हैं। वनों की जगह ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं ने ले ली है और क्रोधित प्रकृति का तांडव सामने आता है।
फूल चंद्र विश्वकर्मा भास्कर ने कहा बढ़ती जनसंख्या और संसाधनों का अनियंत्रित दोहन मानव सभ्यता को विनाश की ओर ले जा रहा है।
संगीता चमोली ने कहा प्रकृति के साथ खिलवाड़ ही प्रकृति के दुष्परिणामों को जन्म दे रहा है।
मंजी भाई ने औद्योगिकीकरण, धरती का दोहन, प्रदूषण व मृदा अपरदन पर प्रकाश डाला।
नीरजा शर्मा ने अपनी सशक्त लेखनी से कहा धरती माँ पर इंसान के बढ़ते अत्याचार के कारण साँस लेने के लिए भी ऑक्सीजन सिलेंडर ख़रीदे जाते हैं अगर अभी भी न सँभले तो भयानक परिणामों के लिए हमें तैयार रहना होगा।
डॉ सरोज ने बताया समस्त प्राकृतिक संपदा को संरक्षित और सुरक्षित करने वाली धरती माँ के प्रति हमारा कर्तव्य बनता है कि हम उसका यथासंभव, आवश्यकता के अनुसार ही दोहन करें।
डॉ अनीता राजपाल वसुंधरा ने सम्पूर्ण विषय को बिंदुवार स्पष्ट करते निष्कर्षतः कहा यदि आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन न बनाया गया तो हमारी भावी पीढ़ी को विरासत में देने के लिए उपदेश के अलावा कुछ नहीं होगा। अरुण ठाकर कवित्त के अनुसार केवल उतना ही दोहन हो जितना आवश्यक जिससे धरा सुरक्षित रहेगी और हमें हमारे पर्याप्त साधन भी मिलते रहें।
दिव्या भट्ट स्वयं ने कहा प्रत्येक व्यक्ति को सोच समझकर संसाधनों का प्रयोग करना चाहिए ताकि अनावश्यक दोहन न हो और हम मिल जुलकर इस समस्या का समाधान निकालें।
नृपेंद्र चतुर्वेदी सागर लिखते हैं जब हम धरती माँ पर अत्याचार करते हैं तो धरती माँ विकराल रूप लेकर प्रलय का आरोप भी धारण करती है और पल भर में बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं को ध्वस्त कर देती है।
अतः अत्यधिक दोहन अनिश्चित ही नहीं अमानवीय है।
नंदा बमराड़ा सलिला कहती हैं नदियों के किनारे अत्यधिक खनन एवं पेड़ों के अत्यधिक कटान से प्राकृतिक आपदाओं को झेलना पड़ता है। रंजना बिनानी के अनुसार इंसान अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए इस हद तक गिर गया है कि हमारी जीवन रक्षक धरती माँ के ग्लेशियर पिघल रहे हैं जल संकट, वायु प्रदूषण जैसे संकटों से हम घिर गए हैं।
मंच की संस्थापिका व अध्यक्षा डॉ दवीना अमर ठकराल देविका ने समस्त कार्यकारिणी के सहयोग से सभी सहभागी रचनाकारों को यथोचित, यथासंभव सम्मानित करते हुए भविष्य में और अधिक सहभागिता व सक्रियता के लिए रचनाकारों को प्रेरित व आमंत्रित किया।